यादो के निर्मल झरनें में बहती रही
जाने किस किस लम्हो में
वह नदी रही पर सूखी रही
बहती रही उफनती रही
कलकल हुई छल छल बनी
वह नदी रही पर सूखी रही
सुनहरी हुई सौंधी बही
सूरज डुबा मद्धम शाम हुई
वह नदी रही पर सूखी रही
गुजरती रही हरीभरी हुई
शांत लहरे तन्हा रातें रेंत हुई
वह नदी रही पर सूखी रही
गाती चली सुमधुर बही शीतल हुई
लहर लहर मचल मचल
वह नदी रही पर सूखी रही !!
जाने किस किस लम्हो में
वह नदी रही पर सूखी रही
बहती रही उफनती रही
कलकल हुई छल छल बनी
वह नदी रही पर सूखी रही
सुनहरी हुई सौंधी बही
सूरज डुबा मद्धम शाम हुई
वह नदी रही पर सूखी रही
गुजरती रही हरीभरी हुई
शांत लहरे तन्हा रातें रेंत हुई
वह नदी रही पर सूखी रही
गाती चली सुमधुर बही शीतल हुई
लहर लहर मचल मचल
वह नदी रही पर सूखी रही !!
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteकभी तो बहेगा पानी नदी से.....
ReplyDeleteगहरे भाव लिए बढिया रचना।
वह नदी रही और सूखी रही
ReplyDeleteकमाल की पंक्तियां हैं संध्या जी ,नदी के सूखे होने का दर्द ...गजब की अभिव्यक्ति ।
वह नदी रही पर सूखी रही……… अब कहने को क्या बचा।
ReplyDeleteशायद यह अंतर्द्वंद है ...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना...
ReplyDeleteसुंदर रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDelete