जिन्दगी कई तरह से
धुमती रही चबुतरे पर
रखे सांसों के इर्द-गिर्द
पनाह चाहिये उसे
तेरी तीखी तल्ख
शिकायतों से बचने के लिये
चलता उगता बढता वक्त
कभी भी नही रुका
छिले जख्म सुखे नही कभी
नम सांसो से
जिंदगी पिघलती रही
शिकायते तेरी जायज़ रही
पहचान तो मुक्कमल हुई
करीब आते गये और
दो गज जमीन नसीब ना हुई
रुह को
जिंदगी अपने लिबास में
खाक छानती रही
दरख्त की
दर्द को नंगे हाथो में लिये
फिरती रही वो
यह सच है कि
अभी एक ख्याल बाकि है
तू मिल तो सही !!
धुमती रही चबुतरे पर
रखे सांसों के इर्द-गिर्द
पनाह चाहिये उसे
तेरी तीखी तल्ख
शिकायतों से बचने के लिये
चलता उगता बढता वक्त
कभी भी नही रुका
छिले जख्म सुखे नही कभी
नम सांसो से
जिंदगी पिघलती रही
शिकायते तेरी जायज़ रही
पहचान तो मुक्कमल हुई
करीब आते गये और
दो गज जमीन नसीब ना हुई
रुह को
जिंदगी अपने लिबास में
खाक छानती रही
दरख्त की
दर्द को नंगे हाथो में लिये
फिरती रही वो
यह सच है कि
अभी एक ख्याल बाकि है
तू मिल तो सही !!