जाना किसी लौटने से कम ना हो
पर इस वक्त मे
सडके भी गुत्थियों से होकर जाती हैं
और गुत्थियां कंदराओ मे ठहरा हुआ,घुप अंधेरा हैं
रौशनी, सूरज से जितना दूर
और ठहरा हुआ
कदम भी उतना ही घर से दूर
फ़िर भी हम लौटना चाहते है, तो घर
काश बचपनवाला घर लौटता
जहां सब कुछ सुन्दर ही होता था
सच
सुन्दरता को बचाना कितना मुश्किल है
जैसे कविताओं मे
भाव से, शब्दो को कटने से बचाना
अभी इस कटते वक्त मे
सिर्फ़ लौटना चाहते है तो घर
मां-पिता जी के संतोष से भरे
नजरोंवाले घर मे
सुन्दरता को बचा लिये जाने वाले
उस घर मे
जहां एक ही पल मे जमीन और आसमान
बडी आसानी से मिलता हुआ दिखाई दे जाते थे
आज अगर
लौटना चाहते है तो
सिर्फ़ घर !