आसमान धुआँ-धुआँ सा

खडखडाती हुई पत्तियाँ
मन भागता हुआ कोसो दूर
नदियों ,झीलो, सागर सब से

जगह जगह पर
रोते बिलखते
भूख से
मासूम बच्चें

आसमान धूआँ से भरा हुआ
जल रही है इंसानियत कही
राजनीति की आंच
कहे या
भूखे मन का तांडव

खाक होने पर भी
सुलग रही है जिंदगी यहाँ
वे है कि घात लगाये बैठे है
और उनके एहसास में
तितलियाँ उड रही है हर कही

जंगल है खुंखार जानवरों से भरा पडा
हम है कि खुशबू तलाशते है
जीना सिखते है
आर पार की कहानी पर

नाखूनों के बीच बच्चों की किलकारियाँ
बौराई आंखो में पलती उनकी बेटियाँ
कोठियाँ
ना जाने कितने दिनो की ताताथईयाँ

वह बहुत याद आता है
दूर किसी पहाड पर बैठे परिंदे को
जब बच्चों सा रोता है
उनके बच्चों के लिये !!

सांसों में घुली रेखायें

आड़ी और तिरछी रेखाओं के बीच 
कुछ रेखायें सामानांतर भी चलती है
कहीं  तक जाती हुई
वे जोडती है
समानांतर चल रही रेखाओ को
जुटना और टुटना भी पडता है
कई बार इनके गणित में फंसकर 

अब क्या कहें किसे कहें
हर जगह पर है आड़ी तिरछी रेखायें
जिसमें फंसे हुये विवश महीन धागें 
हवा अब सांस लेने की कला से आती है

सीधी और सरल चलने वाली रेखायें
फंस जाती है अक्सर
अनसुलझी रेखाओ के वक्राकार के बीच
फंसी सांसे और उलझी रेखायें 
निहारती है आसमान घण्टों
शायद वह टपके और डूब जाये

ऐसा कुछ नही होता जिससे वे
अपने गहन पीड़ा से बाहर आ सके
जब तक सांस चलेगी  
आसमान शांत स्थिर
और अविचलित मुद्रा में
निहारता रहेगा उन्हें वर्षो

दूर बैठें शाख पर एक परिंदा
उड जाता हो महीन धागों से परे 
बेबस असहाय और निरीह छोड़कर
तब अपने दर्द में डूबते हो खोजते हुये
कुछ गांठें जिन्हें खोल दिये जाने से
पृथ्वी का हरा होना तय हो

बरबस बरसती है अश्क 
बहने लगती है नदियाँ
समानांतर रेखाओ के बीच !!

ये जिंदगी भी न

कहते कहते कुछ
बेआवाज हो जाती है 
तब उड़ती चिडियों को
देखने लगती है एकटक
फिर उंगलियों को चेहरे पर फिराती है
और गीले होने के एहसास से
होठो को  चौड़ाकर
एक उदास मुस्कान
छोड देती है कई जोडी आंखो के बीच

इसतरह कुछ
सुबह से शाम तक के टिक टिक पर
जिंदगी की कढ़हाई में पकती है लगातार
घण्टों,दिनों,महीनों और सालों
तब कहीं वह परिपक्व होती है

छोटी छोटी बातों को निगलते हुये
और बड़ी बातों से फटी चादर को सिलते हुये
निकलना होता है रोज
मंजिल तय करने के वास्ते
पहचाने चेंहरो के बीच
अंजाने सफ़र पर
ये जिंदगी भी न !!

क्षणिकायें

        1.

समंदर है गर किनारे
तैरने का हुन्नर आ जाये
तो अच्छा  !!
          
       2.

जंगलों को मिटाना
बदलने लगा है दस्तूर
जिंदगी की
साँप अब लोटते है
दरवाजों पर !!
          
      3.

फूल मिटाने की
कवायद
तेज कर दी उन्होंने ने
जिन्हें खुशबू से परहेज नही
कांटे हवाओ में बिखर गये
सांसो की खैर नही अब  !!
         
          4.

रोज़ सुबह चिडियों का
चहकना कम होता जाता है 
घोंसलें अब सुरक्षित नही रहे !!
         
         5.

वो नही कहते
कभी कि गैर हो
पर
जब भी मिलते है
मूँह फेर लेते है !!