रास्तें दो थे
कौन था वह जिसनें
हमारी पहली सांस को रास्ता दिया
जिसपर चलते हुये सांसो ने
कदम बढाना
और बढना सीखा
पर रास्तों के दोहराव ने
युग-युगांतर की
भटकन को साश्वत करार दिया
उन रास्तों पर दुबारा लौटना संभव ना था
भटकना तय था
उन पगडंडियों को किसने मिटाया
जहाँ सौंधी मिट्टी की खुशबू थी !!
कौन था वह जिसनें
हमारी पहली सांस को रास्ता दिया
जिसपर चलते हुये सांसो ने
कदम बढाना
और बढना सीखा
पर रास्तों के दोहराव ने
युग-युगांतर की
भटकन को साश्वत करार दिया
उन रास्तों पर दुबारा लौटना संभव ना था
भटकना तय था
उन पगडंडियों को किसने मिटाया
जहाँ सौंधी मिट्टी की खुशबू थी !!