लोटे में दुबका बैठा है समन्दर
और लोटे को सब भूल गये हैं
क्योंकि चेतना धुंधली है
जिन औरतों ने अपने पति को परमेश्वर माना है
और चांद को चांदनी में देखा है
वे ईर्ष्या करती हैं
चांदनी से
और कत्ल करती है अन्धेरे में
अपने भगवान की
सुबह सबेरे
सबसे पहले उठकर
काजल बिंदी और सिन्दूर लगाती है
और परायी औरतों पर शक भी
और घण्टों घुलती है तमाम तरह की तामझाम में
पर कितनी कमजोर हैं
ये औरतें
लोटे मे समन्दर, उन औरतों की तरह है
जिन्हें यह पता ही नही कि वे समन्दर है
पर लोटे में कैद,
समन्दर में लोटा होता
तो बात कुछ और होती
और वक्त इतना धीरे नही बदलता और
लोटा भी नही खोता!