गुमशुदा मंजिल के बीच

परंपरा कुछ ऐसी थी कि
पत्थर के अंदर
सबसे खूबसूरत और
शक्तिशाली फूल तलाशते थे हम 

हमें सबकुछ पता था
कि
मृग मरीचिका के भयावह दुष्चक्र मेँ
कही कोई पानी नही है
पर प्यास के लिए कही दूसरा विकल्प भी नही था
और डूब जाना हमारा एक मात्र चयन

बिखराव से भरे रंगो की कैनवास पर
अनेक रंग का नया आसमान तलाशना
जिजीविषा साँसों की रही

तन्हाई मेँ
सड़कें कितनी चौड़ी हो जाती थी
गुमशुदा मंजिल के बीच
हम जिंदगी को
जिंदगी की तरह देखना चाहते थे तब

कभी कभी 
पत्थर ,प्यास ,कैनवास ,सांसें 
सबके सब एक नदी की तरह दिखते थे
उसमें बहते जाना
उम्मीद थी
और शायद यही जिंदगी !