शिनाख्त शेष है !

दहशत में है शहर
और हम फिरते है
मारे मारे

खौफ में
जीया करतीं है रातें
और गहरे सन्नाटो के बीच
तन्हाईयां

आकाश की गहराई में
उम्मीद सितारों की
दूर बहुत है

शाम ढलने को है
बेपता हम
मकान गिरवी है
और तारीख मुकर्र
शिनाख्त शेष है
और सफ़र बाकी !