एक कीड़ा रेंगता है पूरे कैनवास पर

नन्हें आंखों को
कई चश्मे मिले
सांसो की सफर में

चश्में चढे‌ आंखों की
तह में
एक कीड़ा रेंगता है
भय के पर्दे के बाहर
नही आता ,पर
अक्सर रात के सन्नाटो में

आँखो के धुंधला जाने पर मातम मनाता है

रौशनी की चाहत में
रौशन दीये की तरह जलता भी है
एक कीड़ा
बेहद घनी जिंदगी के बीच
कुछ जाले बुनता है
नर्म और गुनगुना !

चाँद तारे तोड़ लूं

तू ज़रा करीब आ
तो पुछ लूं
कि उनका सूरज दूर क्यों है ?

चिराग़ सिर्फ
बंद दीवारो के बीच
सकून तौलते है
आ ज़रा करीब तो
चाँद तारे तोड़ लूं

उन्हें भी मय्यसर हो
उजाले 
फेर जरा हाथ तो 
वो नज़ारे जोड़ दूं !!

बाज़ार की नज़र में

आसमान के नीचे की दुनिया सिमट गई थी
छ्तो की चौड़ाई बढती रही 
और परिंदों के परों पर उड़ान भारी था

पत्थरों से टकराते रहे
सम्वेदी तंतुयें 
प्यास बढ़ती रही और
पंख झड़ते रहे

बाजार की नजर में
दुनिया बिल्कुल गोल थी
और आदम जात एक वस्तु !!

तेरे शहर में

फख़्त
दो चार दिन की चाँदनी थी
और वक्त कातिल
शहर में हरशख़्स
यूँ ही तन्हा न था

एतवार अपने अक्स पर
क्यों ना करते
पर आइना शहर का
पुराना बहुत था

तेरा शहर मशहूर बहुत था
आते रहे हररोज़
तितलियों की चाहत में 
पर पहचान बदलकर  !!