स्पर्श की ख्वाहिश को मुकम्मल हो जाने दे

शब्द-शब्द उलझ जाने दे
कविता-कहानी से बहल जाने दे

रौशन रहेगा अक्षरों में लौ
एक गीत को गज़ल हो जाने दे

शाखों पर रुत आयेंगी और जायेंगी
मेघों को दरख्तो पर बरस जाने दे

राग और विराग का नाद बिखरा है यहाँ
सूरो को तालो के साथ सज जाने दे

सांस उल्झी हुई है धडकनों में रात-दिन
स्पर्श की ख्वाहिश को मुकम्मल हो जाने दे !!

कैसे छुपा ले

करीब से गुजरती हवाओ से
कैसे कह दूँ कि
तेरी खुशबू छुपा ले

माना रात गहरी है
अंधेरो से कैसे कह दूँ कि
जुगनू छुपा ले

आसमान पर सितारे सजे है
चाँदनी से कैसे कह दूँ कि
चाँद छुपा ले

तू शहर में मशहूर बहुत है
पर गलियों से कैसे कह दूँ कि
तुझे छुपा ले
  
गुलशन में खुशबू है तेरे इक
फूल के दम से
धडकनो को कैसे कह दूँ कि
दिल को छुपा ले !!

उनके चेहरे पर सपने

आज भीड है हर जगह
और उनके चेहरे पर सपने
जेबे तलाशती हुई
पर उसमे सिर्फ बचे
ईंट पत्थर

हाशिये से बाहर लोग
अब बस भीड का हिस्सा है
बदहवास सांसो की जमीन पर
सपने में सिर्फ भूख है
और उनके जलते पेट को  
एक पूरी नींद मय्यसर नही
कि ख्वाब में भी पूरा चाँद सा थाली मिले

आंख और
उनके सपनों के बीच जब
उनकी कुतर दिये गये जेबें आ जाती है
तो सूरज जल उठता है
और धरती पीली हो जाती है

तब कुर्सियाँ आसमान से टंग़ी
हवा में ईंधन छोडती नजर आती है
फूँकते हुये गरीबी
उसपर बैठी
दो जोडी गिद्ध की आंखे नजर आती है
कुछ तो गडबड है !!

दर्द उंगलियों से रिसता है

रेत उंगलियो से
वक्त की तरह फिसल गया 
एहसास बंधे रह गये थे
मुठ्ठियो मे
भूख उंगलियों से रिसने लगा था
तब मन बेबस
आनाथ पडा रह गया था कही

शहर अजनबी और सौ धोखे
फूल कांटो के बीच भी
खुशबू का साथ नही छोडा कभी
इंसानी फितरत में
गुलाब कहा था गेंहू के पीछे
उंगलियाँ कटती रही 
वक्त की पटरियो पर

उगाई थी उसने हरी दूबे
रस्मो से बंधी जमीन
सूखाग्रस्त और बंजर मिला था
जगह जगह से
हिरने कस्तुरी के लिये नही बल्कि
दूब के लिये तडपती थी उन दिनों 

राते बैठी रहती थी
मुंडेर पर बैठे काग की तरह
सितारे सजे तो उजाले हो
और सुबह के शबनमी गोद में
कदम थिरके और चमन महके

वक्त के नाखुन बडे हो गये थे 
खराश जिस्म पर
भूख से बढने लगी थी
सौ मन प्यार भी
कचरे के हिसाब में था 
जिसमे सडता रहा मासूमियत

तुम्हें नही पता कि
दहलीज और दीवार के बीच
जो कुछ अनसूना और अनकहा है
बस मासूमियत है
जिनकी सौ कुर्बानियाँ होती है
बेमतलब
कटती गायें ही है बस
इनके बीच

होश भी नींद का दामन थाम ले
पर जिंदगी मय्यसर ना होगी
क्योकि ख्वाब की खेती पर 
अफीम उगता है 
जीते वही है माँ
जो धनवान है !!     

माचान पर सोयी नींद गौरैंया थी


आंखो में सिहरता समन्दर
गोद में लहरे खौफ खाये बैठी रही
आन्ने दो आन्ने की बात नही थी
अब हजार में भी नही भरता था पेट

मचान वही बनता जिसके नीचे लहलहाते खेत होते
संतोष अमीरी में उगे तो मुश्किल क्या
पर गरीबी में
अंगीठी की आग को जलते छोड दे तो
राख होने तक जलेगी जाहिर है

शहर था जिसके करवट में समन्दर सोता हुआ
समय रेलगाडी सा पटरियो पर चलता
सुबह और रात के बीच
सैलाब सी भीड में जुनून सवार 
जेबे टटोलती हुई हाथे
पर खाली
कश लेता हुआ वक्त
जिसे सेहत की कोई फिक्र ना थी

कदभर पर आती स्टेशनें और
सांस सिटी सी आवाज करती हुई
देखकर लोग सावाधान होते जाते
कतार में
लम्बी होती जिंदगी में रफ्तार धीमी
ऊब और घुटन से रास्ते नापे जाते

शहर की खासियत थी कि
तस्वीर सोने की फ्रेम में जडी जाती 
पर चित्र कब और किस तरह पिघलकर टपक जाता
दीवारों को कानो कान पता ना चलता
चित्रकार तलाश करता हुआ दिखता
पर लोग उसे अव्यक्त करार कर देते

एहसासों का समन्दर वही डुबता नजर आया 
जहाँ सिरहाने पर सुरज उगता था
चाँदनी की सफेद आंचल पर तारे सुकून से सोते थे रातो में
शहर था जहाँ सबकुछ बडा हो जाता
एक के बाद एक

नींद मचान पर सोयी गौरैया थी
जिसकी सुबह जल्दी होती
और ख्वाब छोटी !!

चल कही और चले

गमों से पार चले
ए हवा
चल कही और चले

उल्झी सांसो की
गुंथियों की जाल से
पार चले
ए हवा
चल कही और चले

बंजर भुमि की कोख में
लगी आग से
कही पार चले
ए हवा
चल कही और चले

निकल चली है
कई रस्मो-रवायते ऐसी की
शुल जिगर के पार चले
ए हवा
चल कही और चले 

मुद्दतो से वे छींटते रहे है 
बारुद यहाँ वहाँ
फटने से पार चले
ए हवा
चल  कही और चले

हमने भी इक बनाई है
रौशन चमन जहाँ में
ए हवा
चल उसी के आस-पास चले !!

तंत्रिका तंत्र और ख्वाब

हाथ नींद के अंदर से
मानो खिंच लाया हो सपना
और बांट रहा है उसे
जरुरतमंदो में

एक भोर आंखो से होकर गुजरता हुआ 
ग्राह्य तंतुओ से अलग एक
आसमान से दूर डुबता समंदर के बीचोबीच
संधिस्थल सा मै और तुम
थोडा खाली जगह है उन्हे अभी भरना बाकि है

उगती घासो पर सम्वेदनाये अभी ग्रह्य है
रात को सियार नही खाये तो
नींद और मुर्गियाँ बची रहेंगी और
अंडो को सोने के भाव बेचेंगे तब

सम्वेदी तंतुओ को तलाश है
तुम्हारे दिन जैसे अक्षरो का
जिनसे ट्पकते हुये दर्द
मेरुदण्ड को खाये जा रही है
बचाना सम्भव हो तो
मस्तिक के सुरक्षित जगह को बचाओ

उसने सिखायी थी
नाक आंख और कान के संरचना तंत्र को
पर बाकी लोगो को यह नही पता था कि
प्यार की कोई संरचना तंत्र नही होती

जाल थी दुनिया सभी उल्झे हुये थे
तंत्रिका तंत्र की तंतुओ  की तरह
पर अभी भी कुछ लोग सपनो के तलाश में थे
जबकि फ्रायड ने यह बता दिया था कि
जिस्म के गांठो में मन भी उल्झा हुआ है
पर यह क्या हो रहा है !!

मंगल काका भुलने लगे है अब

तीन जोडी आंखे
एकल परिवार की तस्वीर
सहेजे हुये
आंखो में आसमान और
उसके रंगो की भरमार 
वक्त की अग्निकुंड में हवन होता सपना
एक तितली अनेक तितलियाँ
डाल डाल पात पात

आंखे लाल पीली शर्मीली
खौफ के रंग गहराता
लुढकता पुतलियों पर
माँ बाप विवश जमीन पर
सूरज को उगाते हुये
जलाते हुये अपने हाथ

खेतों से उडाते हुयें पंक्षी
भरते जाते है पेट
कोयल कन्धो पर बेसुध गाती
कोई मंगल गीत पर
गेन्हूँ की बालियों का रंग उडता जाता

बनाते कुँआ कल बहन आयेगी
भूखी प्यासी और भर भर आंख पियेगी
गौरैयो का जख्म
आओ कुछ राह जोडते है
मंगल काका पगडंडियो को
अब भुलने लगे है!!

धूप से बनी परछाई वाली छाँव थी अब

अंतहीन इंतजार में
सांस लेता हुआ 
पिंजडे में बंद पंक्षी 
छूट चुके लम्हों का
गिरवी पडा है  अब

अपमानित जिंदगी जीता हुआ
गये पहर के बुझे चिराग सा
पानीहारिन की फुटी मटकी से
जगी प्यास सी
रही जिंदगी उसकी

शब्दों की अन्नत पीडा पर
बरसते रहे बर्फ के गोले 
और तपिश गिरती रही  
कविता की जिस्म पर

उनसे बंधी डोर बडी रेश्मि थी 
जो आंखो को
आठ-आठ आंसू देते खुशी के
अंतस से आती आवाज में
नूर पेशानी की बडी ही रुहानी थी 

शीतल हवा रही एक एक अक्षर
पर 
रिश्तो और जिस्म पर
यकीन न था शब्दों को
इसतरह वह दूर रही दोनों से
और साकार होना था उसे
काठ की मुर्तियों में

धूप से बनी परछाई वाली
छाँव थी अब
जो करीब उतनी ही थी जितनी की दूर
और साथ साथ !!

चिराग जला जाती है ढेहरी पर

उडते पंछियो से
टोह मिलती रही
संदेश की चिठ्ठियाँ
कई  बार लिखी
अक्षरों का सँवारना नही हुआ
घुलते रहे अश्को में

परिंदों के परो से आती खुश्बू
तेरे देश का संदेश देती रही
शाम ढले
समंदर की सुरमई एहसास में
गिनती में बिखरते रहे चाँद तारे
सजती रही रातें पर
बदहवास आंखो में

जंगली हवायें टीस पैदा करती रही
तेरे शहर का दूर होना तब
आंखो में किरचियाँ घोलने लगती  

पर घोंसलो में सोये पंछियों के
चेहरे की सुकून
चिराग जला जाती है ढेहरी पर !!