लिखता मन
पढता तन
सफ़र में
एक परिंदा
पेड की शाख पर बैठा
इंतजार करता
भोर की
अंधेरे में भटकी सुबह
सिर्फ़ नारंगी होगी
इश्क सफ़ेद चादर सी
बात खत्म होगी
कुछ इस तरह
जिस्म से
रुह की रिहाई पर !
पढता तन
सफ़र में
एक परिंदा
पेड की शाख पर बैठा
इंतजार करता
भोर की
अंधेरे में भटकी सुबह
सिर्फ़ नारंगी होगी
इश्क सफ़ेद चादर सी
बात खत्म होगी
कुछ इस तरह
जिस्म से
रुह की रिहाई पर !