एक दीप जलायें
चल तिमिर के पार चलें
वहाँ जन्में
जहाँ कभी हम
अस्तित्व में थे ही नही
स्पर्श
शब्दों का
खिलाकर करे
वो जमीन पैदा
जहाँ खुशबू ही खुशबू हो !
चल तिमिर के पार चलें
वहाँ जन्में
जहाँ कभी हम
अस्तित्व में थे ही नही
स्पर्श
शब्दों का
खिलाकर करे
वो जमीन पैदा
जहाँ खुशबू ही खुशबू हो !
bahut sundar kya bat hai ....
ReplyDeleteshandar marmsparshi srijan ..badhayiyan ji
ReplyDeleteवहाँ जन्में
ReplyDeleteजहाँ कभी हम
अस्तित्व में थे ही नही .... मैं तैयार हूँ :)
बिलकुल....
ReplyDeleteनववर्ष में ऐसा ही कुछ कर जाएँ हम...
नववर्ष मंगलमय हो संध्या जी..
अनु
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
स्पर्श शब्दों का खिलाकर
करें वो ज़मीन पैदा
जहां ख़ुशबू ही ख़ुशबू हो !
वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
क्या बात है !
ज़मीन पैदा करना ... बहुत बड़ी बात है !
:)
आदरणीया संध्या आर्य जी
सुंदर कविता के लिए बधाई !
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
◄▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼►
अति सुंदर कृति
ReplyDelete---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें
ऐसी दुनिया हम सभी के लिए बना दीजिए न प्लीज !
ReplyDelete