मुश्किलों से खेलता
रोता बच्चों की तरह
दिखता
उसके आंखो में खुदा
मानो वह बचपन का
छूटा कोई ख्याल
मुश्किल यह है कि
मुश्किल में सख्त नही वह
पर उम्र और समय से परे
बहुत आसान
क्योंकि बुध्दिजीवी है
वह जी लेता हैं सबकुछ
पता है उसे
चाहता क्या है
चाहत उसकी
बंद मुठ्ठियों में खुला आसमान
जिसपर खींच रखी है उसने
चंद लकीरें ख्वाहिशों की
इंद्रधनुषी
सूरज मद्धम नही होता उन रंगों की
मुश्किल बस इतना सा कि
ख्वाब उसका अपना सा है
जो सोने नही देता !!
रोता बच्चों की तरह
दिखता
उसके आंखो में खुदा
मानो वह बचपन का
छूटा कोई ख्याल
मुश्किल यह है कि
मुश्किल में सख्त नही वह
पर उम्र और समय से परे
बहुत आसान
क्योंकि बुध्दिजीवी है
वह जी लेता हैं सबकुछ
पता है उसे
चाहता क्या है
चाहत उसकी
बंद मुठ्ठियों में खुला आसमान
जिसपर खींच रखी है उसने
चंद लकीरें ख्वाहिशों की
इंद्रधनुषी
सूरज मद्धम नही होता उन रंगों की
मुश्किल बस इतना सा कि
ख्वाब उसका अपना सा है
जो सोने नही देता !!
khoobsoorat kavita hai bilkul apki tarah
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteखूबसूरत रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआखिर में तो सच में कमाल की लाइनें
मुश्किल बस इतना सा कि
ख्वाब उसका अपना सा है
जो सोने नही देता !!
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteकल 05/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
ख्वाब बचपन से ही समा जाते हैं मासूम आँखों में .... बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteक्या खूब रचना...
ReplyDeleteसादर।