ठहरा हुआ आसमान
गहराती हुई पृथ्वी
सबकुछ बिखरता हुआ
पिघलता हुआ बर्फ
हम कहाँ और कैसे ठहरे
सवाल ही रहा
ऐसी उफान नदियों में कि
सूखती रही उम्मीद
लहरों के संग
जंग में सियासत या
सियासत में जंग
बदल रहा है सबकुछ
अपने धूरी पर
आसमान नीला रहे और
उडान मिलें परिंदो को
उम्मीद से है दरख्त अब !!
गहराती हुई पृथ्वी
सबकुछ बिखरता हुआ
पिघलता हुआ बर्फ
हम कहाँ और कैसे ठहरे
सवाल ही रहा
ऐसी उफान नदियों में कि
सूखती रही उम्मीद
लहरों के संग
जंग में सियासत या
सियासत में जंग
बदल रहा है सबकुछ
अपने धूरी पर
आसमान नीला रहे और
उडान मिलें परिंदो को
उम्मीद से है दरख्त अब !!
्बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना!
ReplyDelete---You Might Like---
1. Google Page Rank Update
2. ग़ज़लों के खिलते गुलाब
नीला आसमान भी मिले तो बड़ी बात हो परिंदों की उड़ान के लिए उन्मुक्त खुला आसमान भी मिले तो बड़ी बात हो ......बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteउम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति....
ReplyDeletenice lines."pr kte parinde hi hai hm khusnasi, khayale- vistre
ReplyDeletemakhmalm nhi rakhte.....
आज जड़ों को ट्रीटमेंट की, बड़ी जरुरत है भाई |
ReplyDeleteपर्वत करने लगे ईर्ष्या , देख पेड़ की बढ़ी उंचाई |
गहराई में जड़े जा घुसीं, बहुतों को यह रास न आया |
करे दिखावा ढोंगी सारे, चाट रहे दीमक की नाईं ||
बहुत खूब... वाह!!
ReplyDeleteआसमान नीला रहे और
ReplyDeleteउडान मिलें परिंदो को
उम्मीद से है दरख्त अब !!
ये उम्मीद ही तो है एक बस ...
सुंदर अभिव्यक्ति !
लाजवाब रचना
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